Thursday, June 15, 2017

हिंदू साम्राज्य दिन


            १६७४ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी उस दिन शिवाजी को राज्याभिषेक किया गया और राजे शिवाजी हिंदवी स्वराज्य के छत्रपति हो गए।  आज उस घटना को ३४३ साल हो गए। इस दिन को हिंदू साम्राज्य दिन कहा जाता है। इस मौक़े पर भारत के इतिहास में झांकना जरूरी है।
            पाठशालाओं में जो इतिहास पढाया जाता है वों सिर्फ पिछले सौ - दो सौ साल का पढाया जाता है। हमारे पाठ्यक्रम में अँग्रेज़ों का शासन, आजादी के लिए किये हुए प्रयास, गांधी और काँग्रेस का इतिहास ही होता है। क्रांति कारकों के प्रयासों के उपर पूरे किताब में बस एक दो पंक्ति या होती है। उसके अलावा, हमको सिखायी जाता है फ़्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति। पहला और दूसरा महायुद्ध सीखते सिखाते  दसवीं कक्षा में शिक्षार्थी पहुँच जाते है और हमारे इतिहास सीख ने पर पूर्ण विराम लग जाता है। ये ढाई पन्ने का टेढ़ा तिरछा इतिहास पढ़ने के बाद पाठकों को ऐसे लगने लगता है की भारत पहले टुकड़ों में बटा था और अंग्रेज आए और तब जा के पहली बार भारत को उसे एक राष्ट्र होने का अहसास हुआ और ये टुकड़ों में बटा भारत एक देश बन गया। और एक भ्रम मन में रहता है। हम भारतीयों को ये लगता है की भारत पर हमेशा परकीय आक्रमण होते रहे और पहले सिकंदर, फिर मोंगल और फिर अंग्रेज हमारे उपर राज्य करते रहे।
दो ढाई हजार साल पहले इंग्लैंड, अमरीका, जर्मनी जैसे देश नक्शा में ढूंढने की कोशिश की तो भी नहीं मिलेंगे। अमरीका तो कब का खूद की पहचान खो चूका है। मगर दो ढाई हजार साल पहले और उससे भी पहले भारत – आर्यवर्त – सिंधूस्थान जरूर मिलेगा। हम अपना इतिहास देखे तो ये भारतवर्ष का इतिहास हमको किमान दो ढाई हजार साल पीछे ले के जाता है। उससे भी पीछे तक जाता है मगर हम दो ढाई हजार साल तक ही सीमित रखते है क्यों की उससे पहले इतिहास पुराणों का रूप लेता है। उस २००० साल मे तकरीबन ८०० साल हम एक राष्ट्र बनकर रहे। तरक्की, खुशहाली और सामाजिक प्रगति के लिए काफी होता है ८०० साल। ३०० साल हम परकीय आक्रामकों से जूझते रहे। और ८०० साल बाह्मनी, मोंगल, फ्रांसी, डच, पोर्तूगीज, अंग्रेज और बाकी यवनों का हमारे देश पर राज्य रहा। दक्षिण भारत तो लगभग १६०० साल तक एकसंध और परचक्र विरहित रहा। स्वातंत्र्य मिल कर ६० साल हो गए, हमने ५ – ६  पीढ़ी यो में इतना बदलाव देखा तो तरक्की खुशहाली और बदलाव लाने में, ८०० साल बहुत होते है।
हमारा संक्षिप्त इतिहास किसी को जानना है तो राष्ट्रव्रत पढ़ना पडेगा। - http://rashtravrat.blogspot.in/p/who-are-we.html  
            हर परचक्र और हर अत्याचार का हमने जवाब दिया। सिकंदर – पूरू, महमद घोरी – पृथ्वीराज चौहान, अकबर – राणा प्रताप। पुरातन होने के नाते हिंदू धर्म में कुछ बदलाव आ गया। जो उस समय के अनुसार हमारे लिए लाभ दायक नहीं रहा बल्कि हानि कारक ठहरा। हमने अपने उपर सात प्रकार के बंध -  पाबंदी या लगाई थी। जैसे की सिंधू बंध, रोटी बंध, बेटी बंध, धर्म बंध आदी।  हमारी सोच अलग हो गई। सिकंदर, शक, हूण, कुशाण आदी आक्रामकों ने आक्रमण किया मगर मोंगल आक्रामकों की सोच अलग थी। वे आक्रमण के साथ धर्मांतरण करते थे। धर्मांतरण यानी राष्ट्रांतरण। बहुत सारे बुद्ध धर्मी भारतीयों ने धर्मांतरण किया और बहुत सारे पूर्व के ओर भाग गए। इस वजह से बुद्ध कि इस जनम भूमि में बुद्ध कम और बर्मा, म्यानमार, थायलॅन्ड आदी में ज्यादा पाए जाते है।
अकबर के बाद हिंदू ढीलें पड गए। हमने जैसे की मोंगलों के आगे हार मान ली । उत्तर में मोंगल और दक्षिण में निझामशाही, आदीलशाही और कुतूबशाही. दक्षिण में हमारी हार सदी १३०० में ही शुरू हो गयी थी। इस बिच उत्तर से महा क्रूर अल्लाऊदिन खिलजी ने पूरे दक्षिण भारत पर अत्याचार करना शुरू किया। बाह्मनी राजे निझामशाह, आदिलशाह कुतूबशाब ने हिंदुओं को सरदार बना के रखा। उत्तर में और एक अत्याचारी जुल्मी औरंगजेब बादशाह बना। चारों ओर हिंदुओं की दुर्दशा होने लगी। धर्मांतरण होने लगा। सारे काफरों को झँझिया कर लगने लगा। हमारे शूर सरदारों ने मोंगल, आदिलशाही, कुतूबशाही और निझामशाही की नौकरी करनी शुरू की। राष्ट्र भावना हीन हो गयी और खुद के लिए लोग ज़ीने  लगे। मोंगल और परकीय हुकूमत में नोकरदार बन गए। लगभग पूरे देश में यवनी हुकूमत शुरू हो गयी। हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों का उनपे असर होना थम गया। वे अपनी सरदारकी संभालने में मशगूल रहने लगे। जब लोगों की देश के प्रती राष्ट्र की भावना हीन होने लगती है तो ये राष्ट्र के लिए ये बहुत हानि कारक  होता है।
शिवाजी के पिताजी शहाजी राजे भी अदिलशहा के नोकर थे। पुणे की सुबेदारी उनके पास थी। शिवाजीकी सोच अलग थी। उसने नौकरी करना पसंद नहीं किया। राष्ट्रनिर्माण में अपना समय बिताया और ३० साल अदिलशहा, निझामशहा, कुतूबशहा और औरंगजेब से लढ के हिंदू राज्य का निर्माण किया। मगर जब तक राज्याभिषेक नहीं होता तब तक लोगों का विश्वास नहीं होता। लोगों के मन में भ्रम हो सकता था की ये सारा हिंदू राष्ट्र के लिए है या फिर आगे जाकर शिवाजी भी किसी यवन की नौकरी करेगा। ये सब सोच कर जब काशी के मशहूर पंडीत गागाभट ने शिवाजी से छत्रपति बनने की सिफारिश की तब शिवाजी ने उनकी संवेदना जान के छत्रपति बनने के लिए हाँ कर दी।
शिवाजी के छत्रपति बनने से हिंदू साम्राज्य पुनः प्रस्थापित हुआ। लोगों के मन में विश्वास जागृत हुआ। और जीते हुए  ३०० कीले और दक्षिण भारत के समुद्र किनारे का सारा परिसर हिंदू साम्राज्य के नीचे आ गया। आगे जाकर हिंदवी साम्राज्य भारत भर हो गया। दक्षिण के तंजावर से उत्तर के अटक (अभी पाकिस्तान में है।) तक और प बंगाल से लेकर अंडमान तक हो गया। भारत फिर एक बार एकसंध हिंदू राष्ट्र बनकर उभरा। ख्रीस्त पूर्व ३२६ तक भारत एकसंध था। फिर एक बार चंद्रगूप्त मौर्य और सम्राट अशोक के समय पर भारत एकसंध हुआ। और शिवाजी के हिंदवी साम्राज्य स्थापना के बाद पेशवा के समय ये राष्ट्र एकसंध हुआ।

हिंदू साम्राज्य दिन का ये महत्व और इतिहास जानना जरूरी है जिनको अपना भारत टुकड़ों में बटा हुआ लगता था और हमेशा परकीय लोगों के नीचे लगता था, उनके लिए तो बहुत जरूरी है।